कोशिश मत करों

आप खुद से पूछिए तो आपके पास हजारों वास्तविक या अवास्तविक कारण होतें है जिसकी वजह से आप नौकरी-पेशे या जिन्दगी में अपनी इच्छानुसार सफल नहीं हो पाएं। हम सब जिन्दगी को दो ढर्रों से जीते हैं एक "नियमबद्ध" और दूसरा "परिस्थितियों के सहारे", जब हम परिस्थितियों में घिर जाते हैं तो हमारा पहला नियम फेल होने लगता है, हमारी योजनाएं धराशायी हो जाती हैं, हम जा कही और रहें होते हैं और पहुंचते कहीं और हैं। हमारे भीतर एक असंतुष्टी बनी रहती है जो हमें भीतर से खाने का मौका ढूढ़ती रहती है। 

     जिन्दगी के दो नियमों में पहला है 'नियमबद्ध' यानी "आप जो चाहते हैं वो हो भी रहा है और आप उसे कर भी पा रहें हैं" और दूसरा नियम है "परिस्थिति अनुकूल"। आप अकसर किसी काम को करने का निश्चय करते हैं जैसे मैं उस जगह जाऊँगा/जाऊँगी, मैं इतने पैसे कमाउंगा/गी, मेरा मंगेतर ऐसा होगा/होगी, लोग मेरी बात सुनेंगे और भी तमाम तरह की(छोटी/बड़ीं) हम पूर्व धारणा, योजना या नियम हम बना लेते हैं, कागज पर भी लिख लेते हैं पर कई बार परिस्थितियाँ हमें कोशिश नहीं करने देती/आगे बढ़ने नहीं देती, वहीं घेरे रखती हैं। ऐसी दशा में हम अपने नियम/योजना को पाने के लिए झटपटा रहें होते हैं और नियती करती कुछ और है। आत्महत्याएँ(suicide), अवसाद, हमेशा दुखी रहना, अपने जीवन के लिए ईश्वर को दोष देना, काम सफल ना होने पर गलत संगत में पड़ जाना और भी कई तरह की मानसिक बीमारियाँ और शारीरिक लक्षण दिखते हैं। मार्क मैंशन अपनी पुस्तक 'अ सब्टल अॉर्ट ओफ नॉट गिविंग अ *क' के पहले अध्याय में कहतें हैं "कोशिश मत करों" मतलब जीवन जैसा चल रहा है चलने दो, परिस्थितियों में घिरें होने से कुण्ठा मत पालों, खुद से लड़ों मत, मानसिक बीमार होने से बचों, परिस्थितियों को दोष देने की आदत से बचों, तुम अपनी वास्तविक जिन्दगी जीओ, जिस माहौल में हो उस माहौल में रहो, जिन्दगी को जीते रहो, इस चिन्ता में ना रहो कि लक्ष्य पाने से पहले कहीं तुम मर गए तो क्या होगा। जो समय चल रहा है जिसे तुम नहीं बदल सकते उस समय में खुश रहो, परिस्थितियों के साथ खुश रहना सीखो, खुद को दोषी ना ठहराओं, परिस्थितियों को स्वीकारों, परिस्थितियों से लड़ों मत। यहाँ गीता की सुप्रसिद्ध लाइन याद आती है जो जीवन का सार भी है "कर्म करों और फल की चिन्ता मत करो" 

कोशिश मत करों- मतलब फल को पाने में जीवन को मत घुलाओं बस कर्म पर ध्यान दो। नियती के अनुसार जीओ और कर्म करते रहो। यही चक्र चलता रहता है। 


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें