चिंता भय को जन्म देती है और भय जीवन को तोड़ देता है। हमारी ज्यादातर चिंता समाज की सुनी-सुनाई कल्पनाओं पर आधारित होती है। शोधकर्ताओं द्वारा ये देखा गया है कि हम 80 से 90% ऐसी कल्पनाओं की चिंता करते हैं जो कभी होती ही नहीं और बाकी की 5% चिंता वास्तविक हो सकती है जिसके लिए हमें सही कदम और योजना बनानी चाहिए और बाकी की 5% चिन्ता हम उन बातों की करते हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते। इन आखिरी 5% को हमें ईश्वर और समय पर छोड़ देना चाहिए। हमें बीच के 5% जिन पर हम अपना प्रभाव डाल सकते हैं उसे बड़ा करना होता है, फोकस करना होता है। जो व्यर्थ की बातें या व्यथा हमारे मन से हमारे उपर सिकन्जा कसें है उसे समाप्त करने की प्रक्रिया को ही रचनात्मकता कहते हैं।
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