देखो जी.. बात बहुत आसान है.. पर सबको समझ नहीं आती..
चाहे लाखों किताबें पढ़ लो.. हजारों लेक्चर सुन लो.. सैकड़ों प्रवचन देख लो.. अनेकों ग्रन्थ-महाग्रन्थ रट लो.. सफल होने और अच्छी जिन्दगी के लिए.. सब ले-दे के सीधे या उल्टे भाषा में.. सभी किताबों-बातों-ज्ञान का लगभग एक ही सार होता है.. और वो है #इन्द्रियनिग्रह
चलो आपको एक और बात बताता हूँ.. फिर इन्द्रियनिग्रह की भी बात करेंगे.. जैसे मुंह में दाँत होते हैं और दाँतों के बीच होती है जीभ.. जीभ के सारे काम दाँत करते हैं और उनका स्वाद या मजा लेती है जीभ.. पर जीभ देखों कितनी चतुर है वो तीनों तरफ से पैने दाँतों के बीच घिरे रहते हुए निरन्तर अपनी सावधानी बरकरार रखती है वर्ना जरा सी लापरवाही और जीभ तो दाँतों से कटी।
तो जैसे दाँतों के बीच जीभ होती है वैसे ही होते है हमारे #कर्तव्य , हमारे कर्तव्य इन्हीं इन्द्रियों द्वारा ही पूरे किए जाते है.. अर्थात इन्द्रियाँ कर्तव्य के लिए होती हैं जैसे दाँत जीभ के लिए काम करते हैं.. वैसे ही पाँचों इन्द्रियाँ और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ कर्तव्यों को पूरा करने के लिए होती हैं।
हम जो करते-पढ़तें-सुनते-देखतें हैं.. वो या तो अच्छी होती है या मजा देती हैं .. यहाँ 'अच्छी होने वाली' और 'मजा देने वाली' में अन्तर समझना होगा, जो अच्छी होती हैं उन्हें प्रयास करके पढ़ना पड़ता है। वो पैसे जमा करने की तरह हैं थोड़ा-थोड़ा करके जमा करोगे तो उन पैसों के ब्याज से ही जिन्दगी चल जायेगी। पर जो मजा देने वाली हैं वो पहले ही शब्द या पहली ही बार में.. रस से सराबोर कर देंगी और धीरे-धीरे मजा देते हुए रसातल की तरफ ले जायेंगी.. जब तक आँखें खुलेंगी (समझ आएगा) तब आप रसातल में होगें.. चलो फिर रसातल से निकलते हैं।
(५ ज्ञानेन्द्रियाँ = आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा और
५ कर्मेन्द्रियाँ = मुंह, हाथ, पैर, लिंग/योनी और गुदा)
इन्द्रियनिग्रह- ये दसों इन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ मिल के कर्तव्यों का निर्वहन करती हैं। पर ये जहाँ भी विचलित होती हैं तो पाँच भावेन्द्रिय - काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का विकास होता है। इन्द्रियनिग्रह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को नियंत्रित रखने के लिए होता है। यदि ये पाँचों भावेन्द्रिय प्रबल हो जाती हैं तो जीवन असंतुलित हो जाता है, ये शुरु में तो मजा देती हैं परन्तु कर्तव्य पूर्ति के बाद की स्थिति में ये निरन्तर अधोगामी बनाती जाती हैं। अर्थात आप इनसे परेशान रहते हों, छोड़ना चाहते हो.. पर छोड़ना मुश्किल होता जाता है।
आपकी सफलता और स्थायी खुशी का एक सबसे जरूरी तत्व है इन्द्रियनिग्रह यानी 'मजा लेने की प्रवृत्ति को छोड़ना'। यदि आप जीवन के प्रति गम्भीर है कुछ करना चाहते हैं पर वो हो नहीं पा रहा है तो आप स्वयं के बारे में खुद से पता लगाइए.. क्या आप की इन्द्रियाँ, आपकी अनावश्यक इच्छाएँ, आपकी आदतें या आपकी दिनचर्या ही तो कहीं नहीं आपकी बाधा बनी हुई है।
बाहर की दुनिया से सिकुड़ कर खुद को ज्यादा से ज्यादा समय देते हुए अपने कर्तव्यों, अपने स्वास्थ्य, अपनी दिनचर्या, अपनी आदतों पर काम कीजिए।
इन्द्रियों पर शासन कीजिए, उन्हें स्वच्छंद मत छोड़िए.. ये ना सोचे की उनकी पूर्ति करने से वह संतुष्ट हो जायेंगी.. आप उनकी जब-जब पूर्ति करेंगे.. ये इन्द्रियाँ जब आपको जरुरत होगी ये पुनः आपकी राह में बाधा बनेंगी और अपनी पूर्ति के लिए आपको विचलित करेंगी। अतः अपनी इन्द्रियों पर हावी रहिए। इन्हें इतना ही प्रयोग करें जितना कर्तव्यों को पूरा करने की आवश्यकता हो।
बहुत गहराई से इन्द्रियों के बारे में प्रकाश डाला है मिश्रा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान😊
हटाएंअति उत्तम, अति सुंदर, अति आवश्यक
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद 😊
हटाएंVery nice prakash ji
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित तथ्य हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया। अच्छा प्रयास है। लिखते रहिए।
जवाब देंहटाएंसटीक प्रकाशवाणी।
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामना।
Nice post 👍
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