श्री अमरनाथ यात्रा वृत्तांत 2013

 



#बाबा_बर्फानी_का_बुलावा

2013 का साल.. नौकरी के साक्षात्कार के लिए दिल्ली आया था, साक्षात्कार के बाद एक सप्ताह का समय मिला.. यानी एक सप्ताह बाद पुनः दिल्ली में उपस्थिति देनी थी, 


अब दिल्ली में एक सप्ताह रुकना या वापस घर जाना कठिन लग रहा था.. तो सोचा चलो माता जी के दरबार में वैष्णो देवी धाम चलते हैं.. दिल्ली से जम्मूतवी की रेल पकड़ी.. पहुंच गया जम्मू.. रेल में ही एक दोस्त बन गया.. घर भी ले गया.. मध्यप्रदेश का रहने वाला था, जम्मू में व्यापार था।


जब जम्मू रेलवे स्टेशन के बाहर आया तो एक सरकारी भवन में भीड़ थी, लाइन लगी.. लोग बहुत ज्यादा नहीं थे.. मैं भी पहुंच गया.. बोर्ड पढ़ा और पूछा तो पता चला, बाबा बर्फानी अमरनाथ जी जाने वालों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है.. स्वतः क्रिया से शरीर पक्तियों के बीच खड़ा हो गया.. पक्ति बढ़ती रही.. शरीर भी बढ़ता रहा.. कागजी आवेदन के बाद, डाक्टर के पास पहुंचे.. डाक्टर जी ने पूरी जाँच कर दी.. बोले तो जोरदार मेडिकल टेस्ट पास किया मैंने.. तुरन्त डाक्टर जी ने हाथ में पर्चा पकड़ाया जिन में आपस में तीन स्लीप जुड़ी हुई थी और डॉक्टर जी ने कहा कि परसों तक बालटाल या पहलगाम में रिपोर्ट करनी है.. मैंने कहा.. जा रहा था.. माता जी के दरबार में.. पर बाबा ने पहले स्वयं का दर्शन देने का आदेश भेजा है.. 


फिर दोस्त अपने घर ले गया.. नहाया-खाया, अपना सारा सामान रख.. यात्रा सम्बन्धी वस्तुएं पिट्ठू बैग में रख कर चल दिया बाबा बर्फानी के दरबार की तरफ.. 


#अमरनाथ जी धाम जाने वाले सभी यात्री जम्मू में भगवती नगर पहुंचते हैं वहाँ गहन जाँच के बाद सब ठहरते हैं और अपनी बस का टिकट लेते हैं, 


अमरनाथ जी जाने को दो रास्ते हैं एक पहलगाम की तरफ से और दूसरा बालटाल की तरफ से, बालटाल वाला रास्ता श्रीनगर-डल झील, निशान्त बाग होता हुआ बालटाल जाता है।


मैं भगवती नगर की तरफ चल दिया, जत्थे के जत्थे लोग भगवती नगर को बढ़ रहें थे.. भगवती नगर बेसकैम्प पर पहुंचने पर आर्मी द्वारा गहन जाँच होती है.. बहुत बारीकी से.. जाँच पूरी  कराने के बाद मैं हॉल में चला गया.. बिस्तर लगाया.. सुबह-सवेरे पाँच बजे की बालटाल जाने की टिकट ले ली.. और कैम्प के बाहर जाके लंगर छका और आ गया हॉल में.. पूरा भगवती भवन का कैम्पस भक्तों से भरा था.. अब मैंने भी सोने की तैयारी की.. क्योंकि कल सुबह पाँच बजे ही बस से बाबा बर्फानी के दर्शन को जाना था..


(रजिस्टर्ड साधु-सन्यासी के लिए बस से अमरनाथ जी पहलगाम या बालटाल जाने का व्यय निशुल्क है।)


सुबह 3:30 पर ही नींद खुल गई थी.. भक्तों के बीच की चहलकदमी ने नींद को फूर्र कर दिया.. कुछ बिस्तरे समेट रहे थे, कुछ बैग सम्भालने में लगे थे.. बाहर बसों के ड्राइवर अपनी बसों को पक्तियों में लगा रहें थे।


 मैं भी नित्यक्रिया के बाद बस की तरफ बढ़ा, सुबह के 4:30 हो चुके थे, बस लग चुकी थी, भक्त यात्री अपनी-अपनी सीट पर सेट होने लगे, 5 बजे 'जय बाबा बर्फानी, अमरनाथ धाम की जय, हर हर महादेव' के नारों की गूंज के साथ बसें चल दी बालटाल की ओर.. जम्मू शहर को पार कर बसों ने पहाड़ की ऊंचाईयाँ नापनी शुरु कर दिया था, नजारे बदलने लगे थे.. पहाड़ों में गूंथी-चीपकीं-अटकी हुई सी सर्पिली सड़कों से बसों का काफिला बड़ चला था.. पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मेरा ध्यान नजारों में लगा हुआ था.. उस समय हमारे बस के आगे-पीछे पूरी सुरक्षा कवच चल रहा था.. तीन-चार बसें थी, एक बस में सिर्फ साधु-सन्यासी यात्रा कर रहे थे.. हमारे आगे एक जिप्सी और एक आर्मी के सैनिकों का ट्रक और एक पीछे आर्मी के सैनिकों का ट्रक चल रहा था.. जिप्सी जरुरत के हिसाब से पूरे काफिले का निर्देशन और निरीक्षण कर रही थी। पहाडियों के मुग्ध करते दृश्य, दूर पहाड़ियों पर तीरझी बिखरी हरियाली के वन, मौसम में आती ठंड़क, मन की प्रशन्नता में विस्तार कर रही थी.


जम्मू का इलाका पार करते हुए हम पहुंचे जवाहर टनल जिसे बनिहाल टनल भी कहते है जो पहाड़ों के भीतर से सुरंग बनाई गई है जिससे जम्मू से कश्मीर सालों-साल जुड़ा रहता है,, जवाहर टनल के इधर का या दक्षिण का भाग जम्मू है और उधर उत्तर का भाग कश्मीर है।


जवाहर टनल पार करके हम पहुंचे टाइटेनिक व्यू प्वाइंट पर, यहाँ पर सड़क बैंड होती है, प्रकृति प्रेमी यहाँ रुकते हैं, फोटो खिचातें है, नजारे लेते हैं.. और यहाँ के नजारे हैं भी बड़े खास.. उन पहाड़ों के बीच दूर तक फैली घाटी दिखती है.. रंग-बिरंगे से खेत दिखते हैं.. उन दूर तक फैले खेतों के बीच कभी पीले-कभी हरे.. मौसम के अनुसार.. दृश्यों के बीच अटकें से जो घर होते हैं वो घर अपने व्यापक स्वछंदता और शांतचित्त आनन्द से लगते हैं, उन घनी हिमालय की गगन छुती ऊँचाई पर ऐसे बड़े मैदान देखना.. खेत देखना.. और खेतों के बीच इक्के-दुक्के झोपड़ियों से दृश्य प्रकृति के सौन्दर्य की परतों को एक-एक करके खोलता-सा प्रतीत होता है।


अब हम चले आगे.. एक कस्बे सी जगह पर (उस कस्बे या स्थान का नाम मुझे याद नहीं) हमारी बस रोक दी गई, सुरक्षा की व्यवस्था पूरी थी, हम सब बस से उतरे और पास ही लगे.. भोलेनाथ बाबा बर्फानी के लंगर की तरफ सब स्वतः ही चल पड़े, सबने वहाँ निशुल्क प्रसाद पाया.. जिसकी श्रद्धा होती उसने दान-पात्र में भी कुछ डालता जाता। सब प्रसाद पाकर, चाय-पानी पीकर, बस की तरफ  बढ़ें, हमारे वीर सैनिकों के निर्देशन में हमारा काफिला सुरक्षा घेरे के साथ डल झील- श्रीनगर को चल पड़ा..

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अब हम कश्मीर घाटी में थे, कश्मीर का ये दृश्य देख कर मैं बड़ा ही संतोष अनुभव कर रहा था, सीधे-सपाट मैदान.. जिनमें खूब सुन्दर से लहलहाते खेत.. बाग-बगीचे.. केसर..  सुन्दर हरियाली, बढिया समृद्ध स्थान.. हाँ! सड़क के दोनों तरफ हमारे भारतीय जवान हर सौ मीटर पर चौकन्ने होकर पहरा देते हुए हमारी सुरक्षा भी सुनिश्चित कर रहे थे.. उन दिनों आतंकवादी घटना होने की आशंका और चरमपंथियों की सक्रियता से ऐसा करना जरुरी था.. और अब भी है..

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा अब भी पहले जैसी है पर अब चरमपंथियों के हौसले पस्त है..


अब हम श्रीगर में पहुंच रहे थे निशान्त बाग पार करते हुए हमारी यात्री बस डल झील के किनारे से होती हुई आगे बढ़ रही थी, सड्क के दाँयीं तरफ पहाड़ और बायीं तरफ बड़ी और बेहतरीन खुबसूरत डल झील दिख रही थी झील के अन्दर शिकारे.. शिकारे डल झील के अन्दर चलने वाली नाव को कहते हैं, इन शिकारों पर झील के अन्दर ही बाजार भी लगता है, अलग-अलग शिकारों पर अलग-अलग दुकानें पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं, झील के पानी में चलती नावों पर सजे बाजार.. क्या दृश्य होता होगा.. ना.. इन शिकारों पर ठहरने के लिए होटल भी होते हैं।


हमारी बस कुछ यात्रियों के कहने पर झील के किनारे रुकी.. लोग डल झील को निहारना चाहते थे.. कुछ आदत से मजबूर लड़के खाली जगह देख कर लग गए लघुशंका करने.. एक कश्मीरी ने वहाँ बड़े जोर से टोका.. तो उन्हें समझ आयीं.. उस समय तक ना मोदी जी आए थे और ना स्वच्छ भारत अभियान ही चला था, पर जो भी हो आप जब भी किसी नई जगह जायें तो स्वच्छता, नियम-कानून-कायदे से रहें.. और हर जगह पुच्च-पुच्च थूकने और बीड़ी सुलगाने को लेकर सजग रहें.. सावधानी ही सुरक्षा है।


हम सुबह के चले थे अब शाम हो चली थी श्रीनगर पार के गंदरबल के आस-पास या आगे हमारी बसें एक आर्मी कैम्प के पास रुकी.. अब अधेरा हो चला था.. हम सुरक्षा जाँच के बाद कैम्प में दाखिल हुए.. आर्मी के सैनिकों के आवास की दायीं तरफ ऊँचीं-नीचीं पहाड़ी मैदान में बहुत सारे टेन्ट के कैम्प लगे हुए थे, जिनमें से सबमें चार से पाँच लोगों के रुकने की व्यवस्था थी.. ये सभी टेन्ट आसपास के कश्मीरी लोगों ने ही लगा रखे थे जिनसे हम यात्रियों को सीधे तय करके टेन्ट लेना था.. मेरे साथ मेरी बस के ही दो लड़के और मिल गए थे, हमने एक कश्मीरी से बात करके प्रतिव्यक्ति 150₹ में रुकना तय किया था सौ-ड़ेढ सौ के बीच ही कुछ तय हुआ था मुझे ठीक से याद नहीं अभी.. टेन्ट के साथ सोने के लिए रजाई-बिस्तरे भी टेन्ट वाले ने ही दिए थे। यात्री भोज के लिए कैम्प के बाहर वहीं बाबा बर्फानी के भक्तों का लंगर लगा था, जहाँ सबने प्रसाद पाया। और रात्री टेम्ट में बिताया, सम्भवतः टेन्ट में बितायी गई ये मेरी पहली रात थी.. वह स्थान और बाबा बर्फानी अमरनाथ धाम का भाव बहुत ही आनन्दित करता है।


सुबह हुई.. टेन्ट से बाहर आए, कोई बहुत जल्दी नहीं थी, तैयार होकर पास ही आर्मी का ए.टी.एम. था वहाँ थे कुछ धन संग्रह किया और फिर बगल के आर्मी कैन्टीन से कुछ जरुरत की और आर्मी प्रेम की वस्तुएं ली गई.. वैसे आर्मी कैन्टीन में सैनिक के सिवा आम नागरिक सामान नहीं खरीद सकते.. पर यहाँ हमें पूरी छूट थी जो चाहें खरीद सकते थे.. खरीदने के क्रम में एक बड़ा आर्मी वाला रकसक बैग लिया, आगे की यात्रा मेरी इसी बैग में होनी थी.. सामान के हिसाब से मेरे पास एक छोटा बैग, एक सामान्य चद्दर, दो पैन्ट, शर्ट और टी शर्ट थे बस, वैसे भी मैं दिल्ली के लिए आया था और बाबा ने बुलाया तो अब पहुंचने वाला था- #आमरनाथ_धाम, जयकारा बोलो- 'जय बाबा बर्फानी- भूखे को अन्न और प्यासे को पानी।'

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आर्मी कैन्टीन से एक बड़ा रकसक बैग लेने के साथ, आर्मी लोगो वाली एक टीशर्ट ली और बाकी कुछ छोटे सामान जो ले सकता था लेकर, छोटा बैग बड़े नए रकसक बैग में डालकर कैम्प से बाहर आ गया बस के पास, सारी बसें एक बड़े मैदान में कतारबद्ध खड़ी थी, मैदान के सामने ही खेल का स्टेडियम था, जहाँ फुलबॉल-क्रिकेट दोनों खेला जा सकता था, बस के पीछे सेब का बगीचा था, बगीचे के किनारे वाले सेब के पेड़ पर सेब फले हुए थे, मैंने पहली बार सेब के फल पेड़ पर लगे देखें थे, पूरा परिवेश का अनुभव बड़ा ही मनभावन था।


हमारी बस चली सोनमर्ग की सुन्दर बर्फीली पहाड़ी, हरियाली और नदी को बहते हुए देखते-देखते हम बालटाल पहुंच गए थे, तम्बूओं की कतार लगी थी। पहलगाम के जैसे ही बालटाल भी अमरनाथ धाम का बेसकैम्प है इसलिए यहाँ अनेकों एजेन्सियों और यात्रियों के रहने और बाकी सुविधाओं की व्यवस्था रहती है।


हमारी बालटाल तक की यात्रा पूरी हो गई थी, बाबा का नाम लेते हुए अब हमें पैदल आगे बढ़ना था.. सामने ऊँची-ऊँची पहाड़ी के बीच से रास्ता दिखाई दे रहा था जिसपर यात्री आ-जा रहे थे, हमारा पास चेक करके अन्य औपचारिकताओं के बाद हम बाबा की गुफा के रास्ते पर बढ़ चले.. शुरु की कठिन चढ़ाई के बाद एक चौक सा आया जहाँ कुछ दुकाने भी थी सब भोले का नाम ले बढ़ते चले जा रहे थे। मैं चढ़ाई करता हुआ आ रहा था इसलिए उतनी ऊँचाई पर भी गर्मी होने लगी, जिससे ऊपरी अंग वस्त्र निकालकर गमछा पहनकर बैग टांग कर मैं यात्रा करने लगा। थोड़ी दूर बाद  एक आर्मी जवान ने टोका तो फिर मैंने टीशर्ट पहनी। पहाड़ों पर चढ़ाई करते समय गर्मी होने से ज्यादा कपड़े नहीं लगते पर जब हम ठहरते हैं तो ठंड लगती है। इसलिए ठंड और स्थान को ध्यान में रखकर पर्याप्त जरुरत के कपड़े लेकर चलना चाहिए।


 हम जितना आगे बढ़ते जा रहे थे रास्ता उतना ही पतला होता जा रहा था, उधर से वापसी करते यात्री और इधर से चढाई करते यात्रियों में से किसी एक तरफ के यात्री को रुकना पड़ रहा था तब चल पा रहे थे।


बालटाल का रास्ता पहलगाम वाले रास्ते की अपेक्षा छोटा है मात्र लगभग 10 किलोमीटर लेकिन इधर से जाते हुए चढ़ाई-चढ़ाई का रास्ता है, इसीलिए यात्री चढ़ाई की शुरुआत पहलगाम से करते हैं और उतरते बालटाल की तरफ से है। पर पहलगाम वाला रास्ता की आसान नहीं है वह चढाई फिर ऊतराई-फिर चढाई और फिर उतराई वाला गुफा से चन्दनबाड़ी तक लगभग 30 किमी का रास्ता है पहलगाम से चन्दनबाड़ी 16 किमी का रास्ता है, पहलगाम की तरफ से चन्दनबाड़ी तक आप गांडी से जा सकते हैं सड़क बनी है , चन्दनबाड़ी से बाबा बर्फानी की गुफा की चढाई शुरु होती है (आगे हम इस यात्रा में इसी रास्ते से उतरेंगे)


बालटाल वाले रास्ते से आगे बढ़ते हुए एक मोड़ के बाद से पहलगाम वाले यात्री भी दूर दिखने लगे थे, बीच में नदी थी.. नदी के इस पार हम और उस पार वो, और अब बाबा अमरनाथ की गुफा भी दिखने लगी थी, मन आनन्द और उत्साह से भरा बाबा के दर्शनों के लिए अधीर हुआ जा रहा था। हमारी बायीं तरफ के बड़े-ऊँचें पहाड बाबा के सानिध्य में रहते हुए हमें आशीष प्रदान कर रहे थे, उनका अलंकरण देखकर मन मुग्ध हो रहा था, सामने बाबा की गुफा और गुफा से घंटियों की बजती ध्वनि मन को बाबा के आशीष के भावों से ओतप्रोत कर रही थी, टेन्ट, दुकानें और भण्डारे टेन्टनुमा अस्थायी बने हुए थे उन्हें पार करते हुए मैं सबसे पहले गुफा को बढ़ा, बाबा बर्फानी की गुफा को जाने के लिए एक द्वार सा बना हुआ था घंटी बधीं थी, द्वार पर शीष नवाते हुए सीढ़ियाँ चढते हुए गुफा को पहुंचा आरती हो रही थी खूब अच्छे से दर्शन हुए आरती का सौभाग्य प्राप्त हुआ,  गुफा में लाइन में लग कर बाबा भोलेनाथ महादेव अमरनाथ जी के बर्फ के शिवलिंग के साक्षात दर्शन हो रहे थे🙏🙏

क्रमशः

#बाबा_बर्फानी_का_बुलावा

#बाबा_बर्फानी_अमरनाथ_धाम

#प्रकाशयात्रा #prakashvanii #prakashnavigator

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तेरह हजार फुट ऊँचाई मतलब 3882 मीटर, जमीन से लगभग चार किलोमीटर ऊपर से थोड़ा सा कम बोले तो अमरनाथ धाम में इस ऊँचाई पर आप आध्यात्म के सागर में डुबकियाँ लगा रहे हो तो यह आपके अबतक का जीवन का बड़ा ही अनमोल क्षण होता है, इस पहाड़ों में पहुंचने वाले लोग बढ़े ही सौभाग्यशाली होते हैं क्योंकि यहाँ प्रकृति है, स्वर्ग है और साक्षात आप प्रभु की गुफा में इस धरती लोक पर बैठे हो ह्रदय-मनमस्तिष्क-रोम-रोम खिल जाते हैं, यहाँ गुफा तक चलके पहुंचना जीवन की अद्भुत अनुभूति होती है। 


3882 मीटर ऊँची गुफा में हो रही आरती में सम्मिलित होने और अमरनाथ धाम के बर्फ के पवित्र व प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन के बाद मैं नीचे आया और वहाँ के एक टेन्ट में ₹150 में ठहरने की व्यवस्था हो गई उस टेन्ट में और भी कई यात्री ठहरे हुए थे, रात्री भोज प्रसाद के लिए हम फिर पहुंच गए बाबा बर्फानी के आशीर्वाद से चल रहे भंडारे में, भोज-प्रसाद पाया और आ गए टेन्ट में, बगल से बहती नदी की गड़गड़ाहट से टेन्ट में प्राकृतिक संगीत बज रहा था जो प्रकृति की स्वच्छंदता और निरन्तरता को बता रहा था।


सुबह उठे, नदी की धारा के बीच पत्थर लगे थे जिनपर चढ़कर पार किया, आसपास भ्रमण किया, नहाने के लिए एक बाल्टी गर्म पानी खरीदा, नहाया, अमरनाथ बाबा को प्रणाम किया और बैग टॉग के चल दिया, वापसी की राह पर।


इस यात्रा के सामने जीवन बौना-सा लगने लगता है पर आप पहुंचे हैं प्रभु के धाम में और जीवन जीना है मृत्युलोक में क्योंकि जीवन पाया है तो जीवन के कर्मों को तो करना ही है.. तो चल दिए वापस


पंचतरणी पहुंचे आगे बढ़ते हुए हैलिपैड के पास, जहाँ से हेलीकॉप्टर आते जाते हैं, वहाँ खच्चरों का झुण्ड था, सभी खच्चर वालों का यह स्टेशन भी था, सब अपने लिए सवारियां देख रहे थे, 


आगे बढ़ते गए तो देखा नदी के ऊपर बर्फ का एक पुल बना है, नदी उस बर्फ के पुल के नीचे से छिप के निकल रही थी और आगे जाकर उजागर होती, 


रास्ता उस नदी के साथ-साथ होता हुआ चल रहा था, सब यात्री बाई ओर से चल रहे थे, मैं दाई ओर से पहाड़ों पर बनी पगडण्डी से होता हुआ, बकरियों-गड़ेरियों के बीच से शेषनाग झील पहुंचा, क्योंकि मैं दाई तरफ से चल रहा था तो मुझे गहरी संकरी घाटी पार करके शेषनाग झील पहुंचना पड़ा, झील अद्भुत थी पर झील से पहले पड़ा भण्डारा, शेषनाग झील का भण्डारा बहुत प्रसिद्ध है, सभी तरह के आधुनिक और पारम्परिक पकवान वहाँ उपलब्ध रहते हैं, यात्रियों के ठहरने का प्रमुख केन्द्र भी है-शेषनाग झील।


महागुनूस टॉप जैसी 14500 फीट की ऊँचाई को पारकर, पहाड़ों पर लगातार चढ़ाई के कारण कुछ खाने का जी नहीं कर रहा था, थोड़ा बहुत खाया और आगे बढ़ा तो वो शेषनाग झील, सुन्दर आधे बर्फ और आधा गहरा नीला पानी और पानी से लगी हुई बर्फिली पहाड़ी जिसने बर्फ की झीनी चद्दर ओढ़ रखी थी, झील हमारे खड़े होने से काफी नीचे दिख रही थी, मुझे आज ही पहलगाम तक पहुंचना था इसलिए मैं झील को खड़े-खड़े थोड़ी देर तक निहारता हुआ भोले का नाम लेते आगे बढ़ गया। 


महागुनूस टॉप की चढ़ाई पार करते हुए आगे बढ़ने पर मैं एक बड़ें से मैदान में पहुंचा वहाँ चाय और पानी मिला, एक गिलास भर के चाय पी थी, शरीर में कुछ उर्जा आई थी क्योंकि शरीर में ग्लूकोज पहुंचा था, रास्ते भर खाने का तो बिल्कुल मन नहीं कर रहा था, शेषनाग झील पर मिला दिव्य भोग भी बहुत थोड़ा खाया था।


अब आगे पिस्सू टॉप की चढ़ाई चढ़नी थी, पूरा दृश्य इना मनोरम-मनोहारी था, कितना मनोरम-मनोहारी था ये तो आपको जाकर ही पता चलेगा।


आगे पिस्सू टॉप के बाद से मैंने बहुत से शार्टकट लिए, मेरे पीछे बड़ा सा रकसक बैग था जिसमें मैंने ढेर सारा सामान भर रखा था, जब-जब पत्थरों से होकर शार्टकट ले रहा था तो ये बैग पीछे उतरते समय अड़ता था और कई बार ये सपोर्ट के भी काम आता था, 


चन्दनबाड़ी पहुंचने से पहले एक बहुत सुन्दर झरना है, रास्ते में काफी दूर तक वह झरना दिखता है, घाटी है, अमरनाथ धाम के अद्भुत सुन्दर नजारों-दृश्यों में, बहुत सुन्दर नाजारा है यह भी।


अब चन्दनबाड़ी पहुंच रहे था शाम हो चुकी थी, बसावट मिलने लगी थी, पक्की सड़क मिल चुकी थी, पूछने पर पता चला कि पहलगाम अभी भी 16 किलोमीटर है, यहाँ से टैक्सी मिल जाती है पहलगाम जाने के लिए, मैं टैक्सी स्टैंड पर पहुंचा, एक ड्राइवर अपनी गाड़ी लिए खड़ा था, बोला-अब कोई गाड़ी नहीं जाएगी क्योंकि इस समय से कोई सवारी भी नहीं मिलेगी, मैंने थोड़ी देर प्रतिक्षा की, ड्राइवर भी घर जाने का मन बना रहा था। 


मैंने सोचा यहाँ कहाँ रुकू और मुझे दिल्ली भी पहुंचना था, मैंने सोचा चलो चलते हैं पहलगाम की तरफ पैदल-पैदल, मैं बहुत थका हुआ था पर फिर भी अनुमान लगाया कि अब से भी चलूंगा तो नौ बजे तक पहलगाम पहुंच जाऊंगा, पर कई बार खुद पर शंका भी होती थी कि पहुंच भी पाऊंगा या नहीं-इस हालत में, 


पीठ पर भारी रकसक बैग लटकाएं मैंने कदम बढ़ा दिए पहलगाम की तरफ-जय भोले, कहते हुए चलता जा रहा था, सोच भी रहा था कोई गाड़ी आ जाए-जो मुझे बिठा ले, सड़क के साथ-साथ घने देवदार या फिर चीड़ (जो भी हो) उन वृक्षों के हरीयाली भरे झुण्ड भी मेरे साथ-साथ चल रहे थे। ऐसे में टहलने में बहुत आनन्द आता है पर यहाँ इस समय हालत खराब सी हो रही थी..


आधे किलोमीटर लगभग चला होऊंगा कि सुर्र से एक जिप्सी निकली, मेरे ध्यान या हाथ देने से पहले ही लगभग पचास-पिचहत्तर मीटर आगे वो जिप्सी रुकी, मेरे मन में आशा जगी- मैं भागता हुआ जिप्सी के पास पहुंचा, उन्होंने पूछा 'कहाँ जा रहे हो' मैंने बताया 'पहलगाम जाना है, अमरनाथ जी से आ रहा हूँ' उन्होंने जिप्सी में बिठाया।


ये जम्मू-कश्मीर पुलिस की जिप्सी थी आगे आफिसर बैठे थे, थोड़ा सा मुंह बना के उन्होंने मेरी तरफ देखा, फिर थोड़ी बात की, उनका सहयोगात्मक रवैया था, मैं पहलगाम पहुंच चुका था। 


पहलगाम में अमरनाथ यात्रियों के मुख्य कैम्प पर उन्होंने मुझे उतारा और आर्मी के सहयोग से कैम्प में प्रवेश के लिए भेज दिया, गहन जांच के बाद मैं कैम्प के भीतर था, अन्दर कश्मीरी बाजार सा सजा हुआ था जिसे पार करता हुआ मैं पक्के टेन्ट में पहुंचा, इस टेन्ट के भीतर भी कई बढिया व्यंजनों से भरपूर भण्डारें लगे हुए थे, थोड़ा बाजार देखा, थोड़ा खाया, कब शरीर पड़ा कब सोया कुछ पता नहीं।

(फोटो- साभार गुगल)

सुबह शरीर का दर्द पता लगा, अमरनाथ गुफा से एक ही दिन में वापसी से शरीर जैसे आटे की तरह गुंथ गया था, शरीर की हर कोशिका अपने वेग में थी। सुबह कैम्प से बाहर आया पहलगाम का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था सड़क की बायीं तरफ कैम्प और दायीं तरफ सड़क के पक्के चबूतरें के बगल से नदी की घड़घड़ाहट माहौल में और भी रंग भर रही थी।


बस का समय हो चुका था, बस चल दी जम्मू की ओर, कटरा में बस पहुंची तो शाम हो रही थी, माता के भवन तक बिजली की पक्तियां दिख रही थी, माँ वैष्णो देवी को वहीं से प्रणाम किया और सोचा देखो माँ कब बुलाती है।

जय माँ वैष्णो देवी

जय भोलेनाथ बर्फानी।।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छा लिखा, प्रकाश जी

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  2. अदभुत वर्णन! आपने बाबा बर्फानी के दर्शन को बेहतरीन ढंग से लिखा है। आप के साथ हम सब पर भी बाबा बर्फानी का आशीर्वाद बना रहे। बाबा के दिव्य दर्शन का मैं भी आकांक्षी हूं देखिए बाबा कब बुलाते हैं।

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  3. बहुत बढ़िया प्रकाश भाई। एक ही बार में पूरी यात्रा पढ़ डाली। पहाड़ों को महसूस भी किया।

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  4. बाबा ने चाहा तो हमारी इस वर्ष की सर्वप्रथम यात्रा बाबा बर्फानी धाम की ही होगी
    बहुत बढ़िया जानकारी प्रदान की भाई जी

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  5. जय बाबा बर्फानी

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  6. जय बाबा बर्फानी।

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