यात्रा

यात्रा पर जाने को मैं बसंत के रुप में देखता हूं। बसंत को आप याद कीजिए खुशनुमा मौसम, पेड़ों पर नए पत्ते और तमाम शारीरिक और मानसिक बदलाव, नरसंचार व स्व को प्राप्त होने की अनुभूति और प्रकृति के अथाह को समझने का एहसास, खुली हवाएँ और अतृप्त रास्ते, धरती-आसमान व जीवों से उठते विविध गीत व सनसनाहट, हर मोड़ के बाद का पता नहीं और जो पता चलें वो अनोखा हों। आप अकेले नहीं; प्रकृति के साथ हों। रास्ते आपके संगी, 🌳🌲🌳🌴 पेड़-पौधे जीव आपके संगी, कभी पहाड़ तो कभी समन्दर, पैर चलते जा रहे हैं हरी-हरी वादियों में, नदी के किनारे, रेतिले मैदानों में, घने जंगलों में, गहरी घाटियों में, झरनों के संग और बर्फ के बीच गहरे फँसते पांव, पथरिले रास्ते, बलखाती पगड़डी.. वाह कितना मजा है चलने में.. चलिए हूजूर.. बोलिए कहाँ चलना है..

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