लिखना

#लिखना ✏ बहुत ही आसान है लेकिन लिखने के बारे में सोचना बहुत मुश्किल। जब आप अपने लिखे हुए को बाद में पढ़ते हैं तो खुद को जान रहे होते हैं। यह हमारी गाढ़ी सम्पत्ति की तरह होता है जो हमारे जाने के बाद भी फल-फूल रहा होता है। मन मुग्धता से भरा अपने इन मोतियों को देखकर प्रसन्नचित्त और आत्मसंतुष्टि से अनवरत ओत-प्रोत होता रहता है और हम इस सम्पत्ति को खर्च करके सच्चे दिल से खुश रहते हैं क्योंकि यह जितना बटता है उतना बढ़ता है। इसलिए लिखिए जो भी मन में आए; जो खुद से बात करते हैं उन्हें लिखिए। जो दुसरों को बताते हैं, उन्हें लिखिए। आपको कोई सभा में बोलने से रोक सकता है या आप खुद शर्माते हो; पर लिखने से कोई नहीं रोक सकता और लिखते समय कोई शर्म भी नहीं, शर्म होती है आँखों में, सभा में बोलते समय आप शर्मा सकते हैं। पर लिखना बहुत ही आसान है। सच में। एक बार प्रयोग करके देखिए। और यदि फिर भी आपके पास विचार नहीं आ रहे हैं लिखने के तो आपको खुद के भीतर झाँकने की जरूरत है। कुछ दिन या घण्टों का अवकाश लीजिए खुद के लिए। कोई खास पुस्तक या साहित्य पढिए। किसी यात्रा✈🏠🚘🚢 पर जाइए। अपनों से मिलिए या फोन पर ही खुल के बात कीजिए। किसी को माफ कीजिए किसी से माफी मांगिए। हँसिए-मुस्कुराइए-कोई खुल के गीत🎧 गाइए। कुछ भी कीजिए अपने मन को फिर से बच्चा बनाइए और जो भी किया उसे फिर लिखते जाइए😄😄😄
#प्रकाशवाणी_३

(19 नवम्बर 2018 की पोस्ट)

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