जलता दीया "कविता"

स्वरचित एक कविता..

जलता दीया-
तम को दूर भगाता है।
आशा की राह दिखाता है।
हम सबको साथ मिलाता है।
चलने की आस जगाता है।
रुकना इसको ना आता है।
यह प्रेम की प्रथा चलाता है।
सबको ही साथ बुलाता है।
जीवन को दिशा दिखाता है।
हँसता है, हँसता जाता है।
रोतो को, साथ हँसाता है।
ये खुद का विश्वास जगाता है।
हारों की आह मिटाता है।
और जीत की राह सुझाता है।
हँसता है, गाता जाता है।
और सबसे गीत गँवाता है।
दुनिया जिसको ठुकराती है।
ये उसका जोश जगाता है।
संदेश ये देता जाता है।
ना रुकना इसका कहना है।
ना झुकना इसका कहना है।
ये साथ है तेरे, तू ना शरमा।
ये पास है तेरे, तू ना घबरा।
जब राह में कोई रोके तो।
ये साथ है तेरे, तू बढ़ता जा।
तू बढ़ता जा, तू बढता जा।
तू हँसता जा, तू बढता जा।

जलता दीया हेतु एक कविता,
द्वारा- प्रकाश मिश्र


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