समीक्षा

हर नौकरी और पेशे(Business) वाला इंसान साल समाप्त होने से पहले अपने पूरे वर्ष के विकास(Progress) को लिखकर नौकरी में अपने बॉस के माध्यम से कम्पनी को जमा करतें हैं। व्यवसायी या किसान खुद अपनेआप का बॉस होने के कारण खुद की गहन समीक्षा करता है। मैं अध्यापक हूँ तो मैं वर्ष में एक बार अपना वार्षिक लेखाजोखा प्रधानाचार्य के माध्यम से विभाग को भिजवाता हूँ। ये तो हुई नौकरी-पेशे की बात.. एक बार खुद सोचिए हमने अब तक के जीवन और आगे आने वाले जीवन के बारे में कोई लेखा-जोखा, कोई रिपोर्ट तैयार की क्या? हमने जीवन के कितने बसन्त पार कर लिए और कितने पार करने है? हम जीवन को किस प्रकार से जीना चाहते हैं और किस प्रकार से जी रहें हैं? हमने जीवन में कितने कंकड़-पत्थर इकठ्ठे कर लिए? कितने फूल खिलें और कितने फूल खिलने बाकी हैं? अब तक के जीवन की समीक्षा करें और आने वाले जीवन की रुपरेखा तैयार करें, सिर्फ एक ही चश्मे से जीवन को ना देखें। जीवन में रंग भरें जब जरुरत हो तो चश्मा बदलें। हर रुप का आनंद लें। हर श्रृगांर की प्रशंसा करें। हर फूल को देख के इठलाए। हर प्रकृति को जिए। हर मौसम में सहज रहें। बच्चों के साथ खेलें। पचास साल से ज्यादा वालों की बिना प्रश्नवाचक चिन्ह लगाए सुने। दिल की बातें अपनों को बताएं। 

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