मैं.. मैं.. मैं.. की रट छोड़ के सबके लिए जीवन जीना.. और जब हम सबके लिए जी रहें होते हैं तो स्वमं को जी रहे होते हैं..
भौतिक संसार का आनन्द लेने के साथ भी व्यर्थ के मोह में और लोभ में ना पड़ता।
यह याद रखना कि मैं किराए का शरीर ले के आया हूँ जो यहाँ आज या कल छोड़ के जाना है इसलिए आज को अपना आखिरी दिन समझ कर जीना.. कल की कुछ उधारी-बाकी ना रखना।
सत्य को जानने वाले गृहस्थ जीवन में निर्लिप्तता से बचने के लिए युक्त वैराग्य को जीवन की चाभी बताते हैं।
युक्त वैराग्य का अर्थ है- जीवन में रहते हुए सांसारिकता से निर्लिप्तता।
टिप्पणियाँ
गजब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद कैलाश भाईसाहब
हटाएंबहुत सुंदर विचार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद श्रीमान
हटाएंबहुत ही बढ़िया, इसलिए तो गृहस्थ आश्रम को वनस्थ आश्रम से भी उत्तम माना गया हैं क्योंकि काजल की कोठरी में रहकर काजल ना लगें ऐसा ही करके दिखाना पड़ता है जिसके बचाव का पथ केवल मात्र अध्यात्म से होकर ही जाता हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भईया , बहुत बढिया उदाहरण दिया आपने
हटाएंबहुत ही सूंदर विश्लेषण आपकी पोस्ट पर कुछ पंक्तिया मुझे भी याद आ गयी
जवाब देंहटाएंये जीवन है इस जीवन का यही है यही है रंगरूप
वाल लोकेन्द्र भाई बहुत खूब गीत याद दिलाया आपने😀😀👍
हटाएंबहुत ही अच्छा है गूढ़ वैराग्य की बाते हर किसी को समझ में नहीं आती है
जवाब देंहटाएंमैं कुछ हलकी फुलकी बातों को ही समझ पाता हूँ
निर्लिप्त भाव से जीवन जीना जब आ जायेगा तो ............................. सब शून्य हो जायेगा
आप ही की संगत में ये सब ज्ञान प्राप्त हुआ है 😀🙏
हटाएंबहुत ही अच्छा है गूढ़ वैराग्य की बाते हर किसी को समझ में नहीं आती है
जवाब देंहटाएंमैं कुछ हलकी फुलकी बातों को ही समझ पाता हूँ
निर्लिप्त भाव से जीवन जीना जब आ जायेगा तो ............................. सब शून्य हो जायेगा
बहुत बढ़िया लेख
हटाएंधन्यवाद रुपलाल भाई जी 😊
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