ईश्वरीय लीला अपरम्पार है, जैसा मैंने जाना है हम ईश्वर के एक अंश है, हमारा मस्तिष्क हमारा नियंत्रक है जो हमें संचालित करता है। मस्तिष्क अपने आसपास से अपनी खुराक ढूंढ लेता है। हमारे आसपास जो भी गतिविधियाँ, विचार और बातें चल रही होती है वो हमारे मस्तिष्क में व्यवस्थित(record) होती रहती हैं और ये हमें बताकर रिकार्ड नहीं होती। मस्तिष्क में रिकार्ड होने को आप अभिमन्यु की कथा से समझ सकते हैं। महाभारत में अभिमन्यु ने गर्भ में रहते हुए चक्रव्यूह में घूसने की कला सीख ली थी। इस कथा की प्रामाणिकता सिद्ध करने से ज्यादा जरूरी इस कथा के आसय को समझना है।
आसय ये कि हम जहाँ रहते है, जैसे लोगों के साथ रहते हैं, जो सोचते हैं, जो सुनते हैं, जो देखते हैं, जो पढ़ते हैं, जो बोलते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, जो आदत बनाते हैं.. चाहें हम मजाक में झूठ बोलते हैं, मजाक में झूठी राय देते हैं, झूठे सपने दिखाते हैं और कई ऐसे व्यवहार करते हैं जो खुद के लिए नहीं चाहते पर दूसरों को कहने करने में परहेज भी नहीं करते, हमारे मन में जो भी बात चलती है चाहें वो दूसरों के लिए हो या खुद के लिए या हमारे समाज में भी जो कुछ होता है वो सारी चीजें, बातें हमारे दीमाग में संग्रहित होती रहती है और जो बातें संग्रहित होती है वही हमें परिमाण में भी प्राप्त होता है। कहते हैं जो हम बोते हैं वहीं हम काटते हैं। यहाँ यह भी हो सकता है बोया किसी और ने हो पर काटना हमें पड़ें क्योंकि जमीन हमारी है। हमारा मस्तिष्क ही वह जमीन है यहाँ कौन बीज लगाए जा रहे हैं इनका ध्यान रखें। अपनी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के चुनावों और रुचियों को समझे। आँख, नाक, कान, मुँह और त्वचा क्रमशः क्या देख, सूंघ, सून, खा और महसूस कर रहीं हैं इनके लिए सचेत रहें।
गुड भईया
जवाब देंहटाएंजैसा हम सोचते है वैसे ही बनते है।